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Wayanad Landslides: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की उपेक्षा से वायनाड में विनाशकारी भूस्खलन, अध्ययन में खुलासा



केरल के वायनाड जिले के पहाड़ी इलाकों में मंगलवार को भारी बारिश के कारण हुई भूस्खलन की घटनाओं मे कम से कम 123 लोगों की मौत हो गई। जबकि 128 अन्य घायल हो गए। मलबे में कई लोगों के दबे होने की आशंका है।



भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र की ओर से पिछले साल जारी भूस्खलन के मानचित्र के मुताबिक देश के तीस सबसे अधिक भूस्खलन वाले जिलों में से 10 केरल में हैं। जिसमें वायनाड 13वें स्थान पर है। इसमें कहा गया कि पश्चिमी घाट और कोंकण पहाड़ियों (तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र) में 0.09 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भूस्खलन का खतरा है। इसमें कहा गया, बहुत अधिक जनसंख्या के कारण पश्चिमी घाट के निवासियों के घरों का घनत्व अधिक महत्वपूर्ण है, खासकर केरल में।



स्प्रिंगर की ओर से प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि केरल में सभी भूस्खलन वाले संवेदनशील केंद्र पश्चिमी घाट क्षेत्र और इडुक्की, एर्नाकुलम, कोट्टायम, वायनाड, कोझिकोड और मलप्पुरम जिलों में केंद्रित थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि केरल में कुल भूस्खलन का 59 फीसदी वृक्षारोपण वाले क्षेत्रों में हुआ। 



वायनाड में घटते वन क्षेत्र पर 2022 में भी एक अध्ययन किया गया था, जिससे पता चला था कि 1950 और 2018 के बीच जिले में 62 फीसदी जंगल गायब हो गए। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया कि वायनाड के कुल क्षेत्र के करीब 85 फीसदी हिस्से में 1950 के दशक में वन क्षेत्र था। वैज्ञानिकों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन से पश्चिमी घाट में भूस्खलन की संभावना बढ़ रही है। यह दुनिया के जैव विविधता के आठ सबसे गर्म हॉटस्पॉट है। 



कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (सीयूएसएटी) के एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रडार रिसर्च के निदेशक एस. अभिलाष ने बताया कि अरब सागर के गर्म होने से गहरे बादल बन रहे हैं, जिससे केरल में कम समय में अत्यधिक भारी बारिश हो रही है और भूस्खलन की संभावना बढ़ रही है। उन्होंने कहा, हमारे शोध में पाया गया कि दक्षिण पूर्व अरब सागर गर्म हो रहा है, जिससे केरल सहित इस क्षेत्र के ऊपर का वायुमंडल अस्थिर हो गया है। यह वायुमंडल की अस्थिरता गहरे बादलों को बनने देती है। इससे पहले मंगलौर में उत्तरी कोंकण बेल्ट में इस तरह की बारिश आम बात थी।

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