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Waqf Bill: वक्फ बोर्ड क्या होते हैं, कानून में संशोधन की जरूरत क्यों पड़ी? नए विधेयक से क्या बदलेगा?

 सार

Waqf Amendment Bill 2024: वक्फ की संपत्ति का संचालन करने के लिए वक्फ बोर्ड बने हैं। देश भर में करीब 30 स्थापित संगठन हैं जो उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करते हैं। सभी वक्फ बोर्ड वक्फ अधिनियम 1995 के तहत काम करते हैं। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने 8 अगस्त को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक पेश किया।




विस्तार

संसद में आज वक्फ संशोधन विधेयक पेश हो गया। कांग्रेस और सपा समेत कई विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया है। वहीं, सरकार का कहना है कि इस विधेयक के जरिए वक्फ बोर्ड को मिली असीमित शक्तियों पर अंकुश लगाकर बेहतर और पारदर्शी तरीके से प्रबंधन किया जाएगा। सरकार ने इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की सिफारिश की है।

आइये जानते हैं कि वक्फ बोर्ड होता क्या है? सरकार ने जो वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया है वो क्या है? वक्फ बोर्ड के पास कितनी जमीन है? इस विधेयक से क्या बदलेगा? विपक्ष क्यों इसका विरोध कर रहा है? विधेयक पर सरकार का क्या कहना है?

पहले जानते हैं कि वक्फ क्या होता है?
वक्फ कोई भी चल या अचल संपत्ति हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर सकता है। इस दान की हुई संपत्ति की कोई भी मालिक नहीं होता है। दान की हुई इस संपत्ति का मालिक अल्लाह को माना जाता है। लेकिन, उसे संचालित करने के लिए कुछ संस्थान बनाए गए है। 

वक्फ कैसे किया जा सकता है? 
वक्फ करने के अलग-अलग तरीके हो सकते हैं। जैसे- अगर किसी व्यक्ति के पास एक से अधिक मकान हैं और वह उनमें से एक को वक्फ करना चाहता है तो वह अपनी वसीयत में एक मकान को वक्फ के लिए दान करने के बारे में लिख सकता है। ऐसे में उस मकान को संबंधित व्यक्ति की मौत के बाद उसका परिवार इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। उसे वक्फ की संपत्ति का संचालन करने वाली संस्था आगे सामाजिक कार्य में इस्तेमाल करेगी। इसी तरह शेयर से लेकर घर, मकान, किताब से लेकर कैश तक वक्फ किया जा सकता है। 

कोई भी मुस्लिम व्यक्ति जो 18 साल से अधिक उम्र का है वह अपने नाम की किसी भी संपत्ति को वक्फ कर सकता है। वक्फ की गई संपत्ति पर उसका परिवार या कोई दूसरा शख्स दावा नहीं कर सकता है। 

वक्फ की संपत्ति का संचालन करने वाले को क्या कहते हैं?
वक्फ की संपत्ति का संचालन करने के लिए वक्फ बोर्ड होते हैं। ये स्थानीय और राज्य स्तर पर बने होते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में अलग-अलग शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड भी हैं। राज्य स्तर पर बने वक्फ बोर्ड इन वक्फ की संपत्ति का ध्यान रखते हैं। संपत्तियों के रखरखाव, उनसे आने वाली आय आदि का ध्यान रखा जाता है। केंद्रीय स्तर पर सेंट्रल वक्फ काउंसिल राज्यों के वक्फ बोर्ड को दिशानिर्देश देने का काम करती है। देशभर में बने कब्रिस्तान वक्फ भूमि का हिस्सा होते हैं। देश के सभी कब्रिस्तान का रखरखाव वक्फ ही करते हैं। 

देश भर में करीब 30 स्थापित संगठन हैं जो उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करते हैं। इन्हीं संगठनों को वक्फ बोर्ड के नाम से जाना जाता है। भारत में 30 वक्फ बोर्ड हैं, जिनमें से अधिकांश के मुख्यालय राज्यों की राजधानियों में हैं।

सभी वक्फ बोर्ड वक्फ अधिनियम 1995 के तहत काम करते हैं। भारतीय वक्फ परिसंपत्ति प्रबंधन प्रणाली के अनुसार, वक्फ बोर्ड मुसलमानों के धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन से जुड़े हुए हैं। वे न केवल मस्जिदों, दरगाहों, कब्रिस्तानों आदि की मदद कर रहे हैं, बल्कि उनमें से कई स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, डिस्पेंसरी और मुसाफिरखानों का भी सहायता करते हैं, जो सामाजिक कल्याण के लिए बने हैं।

देश की आजादी के बाद 1954 वक्फ की संपत्ति और उसके रखरखाव के लिए वक्फ एक्ट -1954 बना था। 1995 में इसमें कुछ बदलाव किए गए। इसके बाद 2013 में इस एक्ट में कुछ और संशोधन किए गए। इसके मुताबिक, राज्य वक्फ बोर्ड एक सर्वे कमिश्नर की नियुक्ति करेगा। सर्वे कमिश्नर राज्य में वक्फ की सभी संपत्तियों का लेखा-जोखा रखेगा। उसे दर्ज करेगा। गवाहों को बुलाना, किसी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा करना सर्वे कमिश्नर ही करता है। इसके लिए सर्वे कमिश्नर का एक ऑफिस होता है, जिसमें कई सर्वेयर होते हैं जो इस काम को करते हैं। स्थानीय स्तर पर वक्फ की संपत्ति की देखभाल करने वाले को मुतवल्ली कहते हैं। इसकी नियुक्ति राज्य वक्फ बोर्ड करता है। 

वक्फ बोर्डों के पास कितनी संपत्ति है?
भारतीय वक्फ परिसंपत्ति प्रबंधन प्रणाली (वामसी) के अनुसार, देश में कुल कुल 3,56,047 वक्फ संपत्तियां हैं। इनमें अचल संपत्तियों की कुल संख्या 8,72,324 और चल संपत्तियों की कुल संख्या 16,713 है। डिजिटल रिकॉर्ड्स की संख्या 3,29,995 है। 

सरकार ने जो वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया है वो क्या है? 
पिछले कई दिनों से चर्चा थी कि सरकार संसद में वक्फ बोर्ड में संशोधन से जुड़ा विधेयक पेश कर सकती है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने 8 अगस्त को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024 पेश किया। 40 से अधिक संशोधनों के साथ, वक्फ (संशोधन) विधेयक में मौजूदा वक्फ अधिनियम में कई भागों को खत्म करने का प्रस्ताव है। 

इसके अलावा, विधेयक में वर्तमान अधिनियम में दूरगामी परिवर्तन की बात कही गई है। इसमें केंद्रीय और राज्य वक्फ बोर्ड में मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना भी शामिल है। इसके साथ ही किसी भी  धर्म के लोग इसकी कमेटियों के सदस्य हो सकते हैं। अधिनियम में आखिरी बार 2013 में संशोधन किया गया था।

इस विधेयक से क्या बदलेगा? 
वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 को हटाने का प्रस्ताव है। इसी धारा के तहत बोर्ड को शक्तियां थीं कि वह किसी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने का निर्णय ले सके। विधेयक में एक केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस के जरिए वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण का प्रस्ताव है। नए अधिनियम के लागू होने के छह महीने के भीतर केंद्रीय पोर्टल पर संपत्तियों का विवरण दर्ज करना होगा।

इस विधेयक में नई धाराएं 3ए, 3बी और 3सी शामिल करने का प्रावधान है। ये धाराएं वक्फ की कुछ शर्तों, पोर्टल और डेटाबेस पर वक्फ का विवरण दाखिल करने और वक्फ की गलत घोषणा से जुड़ी हैं। विधेयक में वक्फ की गलत घोषणा को रोकने का प्रावधान है। अब किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज करने से पहले सभी संबंधितों को उचित सूचना देना होगा।

मुस्लिम महिलाओं को प्रतिनिधित्व
विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में कम से कम दो महिलाएं होनी चाहिए। इस विधेयक में बोहरा और आगाखानी समुदायों के लिए अलग औकाफ बोर्ड (औकाफ वक्फ का बहुवचन है) की स्थापना का प्रावधान है। बदलाव के तहत मुस्लिम समुदायों के बीच शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी और अन्य पिछड़े वर्गों को प्रतिनिधित्व देनी की बात कही गई है।

पहले वक्फ बोर्ड में किसी गैर-मुस्लिम को मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की नियुक्ति नहीं हो सकती थी। अब विधेयक के खंड 15 में धारा 23 में संशोधन करने का प्रस्ताव है। धारा 23 सीईओ की नियुक्ति, उनके पद की अवधि और सेवा की अन्य शर्तों से संबंधित है। यह प्रावधान किया गया है कि सीईओ राज्य सरकार के संयुक्त सचिव के पद से नीचे का नहीं होगा और उसके किसी धर्म के होने की आवश्यकता को भी हटा दिया जाएगा।

नए विधेयक के अनुसार, केंद्रीय परिषद में अब एक केंद्रीय मंत्री, तीन सांसद, मुस्लिम संगठनों के तीन प्रतिनिधि और तीन मुस्लिम कानून विशेषज्ञ शामिल होंगे। इसमें सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के दो पूर्व न्यायाधीश, चार राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्ति और केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल होंगे।

कलेक्टर निभाएंगे मध्यस्थ की भूमिका
नए विधेयक में एक अहम बदलाव कलेक्टर की मध्यस्थ की भूमिका को लेकर किया गया है। अब जिला कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार होगा कि कोई संपत्ति वक्फ है या सरकारी। धारा 3सी में कहा गया है कि इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में वक्फ संपत्ति के रूप में पहचानी गई या घोषित की गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी।

यदि कोई सवाल खड़ा होता है कि क्या ऐसी कोई संपत्ति सरकारी संपत्ति है, तो स्थानीय कलेक्टर को भेजा जाएगा। कलेक्टर जांच करेंगे और तय करेंगे कि संपत्ति सरकारी संपत्ति है या नहीं। वह अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगे। इसमें एक उप-खंड भी जोड़ा गया है कि ऐसी संपत्ति को तब तक वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा, जब तक कलेक्टर अपनी रिपोर्ट नहीं दे देते। मौजूदा कानून के अनुसार, यह निर्णय वक्फ न्यायाधिकरण करता है। धारा 3सी के तहत विवादित भूमि पर अनिवार्यतः सरकार का नियंत्रण होगा, जो पहले वक्फ बोर्डों के पास हुआ करती थी। वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण करने का अधिकार जिला कलेक्टर या डिप्टी कलेक्टर के पास रहेगा।

नए विधेयक से केंद्र को किसी भी वक्फ का लेखा परीक्षण कराने का निर्देश देने की शक्ति भी मिलेगी। यह लेखा परीक्षण भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षक या केंद्र सरकार द्वारा इस काम के लिए नामित किसी अधिकारी द्वारा किया जाएगा।

दान के अधिकार की परिभाषा
प्रस्ताव किया गया है कि केवल मुसलमान ही अपनी चल या अन्य संपत्ति वक्फ परिषद या बोर्ड को दान कर सकते हैं। इसके अलावा यह फैसला केवल कानूनी मालिक ही ले सकता है। नये विधेयक में सरकार ने सुझाव दिया है कि वक्फ बोर्ड द्वारा प्राप्त धन का इस्तेमाल विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए।

बिल पर सरकार का क्या कहना है?
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में विधेयक पर चर्चा करते हुए कहा कि यह बिल सच्चर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर ही लाया गया है। इसी में कहा गया है कि राज्य और केंद्रीय वक्फ बोर्ड में दो महिलाएं होनी चाहिए। इसी में की गई सिफारिशों को लागू करने के लिए हम यह बिल लेकर आए हैं। इस बिल में जो भी प्रावधान हैं, उसमें संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं किया गया है। किसी का हक छीनने की बात तो छोड़ दीजिए, यह बिल उन्हें हक देने के लिए लाया गया है जिन्हें आज तक उनका हक नहीं मिला। उन्होंने कहा कि पहले भी कई बदलाव हो चुके हैं। 1995 में जो संसोधन किए गए थे, उन्हें 2013 में लाए गए संसोधनों के जरिए निष्क्रिय कर दिया गया, इसलिए यह बिल लाना पड़ा है। 1995 का वक्फ संसोधन विधेयक पूरी तरह से निष्प्रभावी रहा है। इसलिए यह संसोधन करना पड़ रहा है। 

रिजिजू ने विपक्ष से कहा कि इस बिल का समर्थन कीजिए करोड़ों लोगों की दुआ मिलेगी। वक्फ बोर्ड पर चंद लोगों ने कब्जा किया है। आम मुसलमान लोगों को जो इंसाफ नहीं मिला उसे सही करने के लिए यह बिल लाया गया है।
  • कलेक्टर की नियुक्ति के बारे में विपक्ष की आपत्ति पर किरेन रिजिजू ने कहा कि कलेक्टर के पास ही रेवेन्यू रिकॉर्ड देखने का काम होता है। तो रेवेन्यू रिकॉर्ड देखने के लिएकलेक्टर को नहीं तो किसे नियुक्ति किया जाएगा।
  • ट्राइब्यूनल में पहले तीन सदस्य होते थे। अब इसमें एक न्यायिक और टेक्निकल सदस्य भी होगा।
  • नए बिल में प्रवधान है कि किसी भी मामले में 90 दिन में उसकी अपील होनी चाहिए और छह महीने के अंदर केस का निपटारा होना चाहिए।
  • बोर्ड को चलाने के लिए जानकार लोगों की जरूरत है। इसलिए अच्छे अधिकारियों को बोर्ड को चलाने के लिए नियुक्त किया जाएगा। 
  • वक्फ संपत्ति से जो भी कमाई होगी वो मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए ही इस्तेमाल होगी।

विपक्ष क्यों इसका विरोध कर रहा है? 
लोकसभा में विपक्ष ने मांग उठाई है कि वक्फ संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश करने के बाद इसे जांच के लिए संसद की स्थायी समिति को भेजा जाए। कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि सरकार को बिल लाने से पहले मुस्लिम संगठनों से बात करनी चाहिए थी। अगर सरकार की नीयत ठीक है तो पहले बिल पर चर्चा करनी चाहिए।

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ट्वीट में कहा कि वक्फ बोर्ड का ये सब संशोधन भी बस एक बहाना है। रक्षा, रेल, नजूल भूमि की तरह जमीन बेचना निशाना है। अखिलेश ने यह भी कहा कि इस बात की लिखकर गारंटी दी जाए कि वक्फ बोर्ड की जमीनें बेची नहीं जाएंगी।

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मोदी सरकार बोर्ड की स्वायत्तता छीनना चाहती है और इसमें दखल देना चाहती है। उन्होंने यह भी कहा कि अब अगर आप वक्फ बोर्ड की स्थापना और संरचना में संशोधन करते हैं तो प्रशासनिक अव्यवस्था होगी। वक्फ बोर्ड की स्वायत्ता खत्म हो जाएगी। वक्फ बोर्ड पर सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा तो उसकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी। इसके अलावा राजद, एनसीपी (शरद गुट), शिवसेना (उद्धव गुट) समेत अन्य दलों ने भी प्रस्तावित कानून का अलग-अलग तर्कों के साथ विरोध किया है।

अनुच्छेद 26 का जिक्र क्यों हो रहा है?
बिल पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने भी इसका जिक्र किया। उन्होंने अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए कहा कि इस बिल में यह प्रावधान है कि गैर मुस्लिम भी वक्फ बोर्ड के सदस्य हो सकते हैं। यह किसी धर्म का आस्था और स्वतंत्रता पर हमला है।  

दरअसल, अनुच्छेद-26 धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है। अनुच्छेद कहता है कि प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का अधिकार होगा। सभी धार्मिक संप्रदायों या उनके किसी अनुभाग को अपने धर्म से जुड़े कार्यों का प्रबंधन करने का भी अधिकार होगा। 

सभी धार्मिक संप्रदायों या उनके किसी अनुभाग को अचल और चल संपत्ति अर्जित करने और उसके स्वामित्व का अधिकार होगा। इसके साथ ही इस तरह की संपत्तियों को कानून के मुताबिक प्रशासन करने का भी अधिकार होगा। 

सदन में अखिलेश यादव ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा, 'यह विधेयक बहुत सोची समझी राजनीति के तहत है। जब लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाने की पहले से प्रक्रिया है तो उसमें नॉमिनेट क्यों किया जा रहा है। वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्य को शामिल करने का क्या औचित्य बनता है। सच्चाई ये है कि भाजपा अपने हताश निराश चंद कट्टर समर्थकों के लिए यह विधेयक लेकर आई है।

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