सार
MCD Standing Committee Election: दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति के एक सदस्य के लिए उप चुनाव हुआ है। खाली पद के लिए हुए चुनाव में भाजपा की जीत हुई। इसके साथ ही स्थायी समिति में बहुमत पर फैसला भी हो गया। बहुमत वाले दल के हाथों में ही एमसीडी के संबंध में अहम निर्णय लेने की ताकत होती है।
विस्तार
भारी हंगामे के बाद शुक्रवार को दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति की एक सीट पर उप चुनाव हो गया। आखिरी खाली सीट पर हुए मतदान में भाजपा उम्मीदवार सुंदर सिंह तंवर ने जीत दर्ज की। भाजपा नेता तंवर ने 115 वोट हासिल कर सीट जीती, जबकि आप उम्मीदवार निर्मला कुमारी को शून्य वोट मिले। आप और कांग्रेस दोनों ने शुक्रवार को मतदान से दूरी बनाई।
कई दिनों के दिल्ली में एक बार फिर आप और भाजपा आमने-सामने हैं। एमसीडी की स्थायी समिति सदस्य के उप चुनाव को लेकर दिल्ली सरकार, मेयर और उपराज्यपाल के बीच टकराव हुआ। बीती रात सदन में हंगामे के बाद शुक्रवार को मतदान कराना पड़ा। यह मुद्दा दिल्ली विधानसभा के मौजूदा सत्र में उठा जहां आप और भाजपा ने एक दूसरे पर आरोप लगाए। आप ने कहा कि एलजी ने पीछे के रास्ते से चुनाव करवाने की कोशिश की। जबकि चुनाव करवाने की जिम्मेदारी मेयर की होती है। वहीं भाजपा ने कहा कि चुनाव की तारीख पहले ही घोषित हो गई थी।
आइये जानते हैं एमसीडी में क्यों हंगामा मचा? इसकी वजह क्या है? क्या होती है स्टैंडिंग कमेटी? स्टैंडिंग कमेटी की शक्तियां क्या होती हैं? स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव कैसे होता है? स्थायी समिति की एक सीट पर उप चुनाव क्यों हुआ? चुनाव में क्या हुआ?
एमसीडी में क्यों हंगामा मचा है?
दरअसल, एमसीडी के स्थायी समिति के एक सदस्य का पद रिक्त है। इसी खाली पद के लिए शुक्रवार को उपचुनाव हुआ। इस चुनाव से दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति में बहुमत पर फैसला हो जाएगा। हालांकि, मतदान से पहले आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच एमसीडी सदन से लेकर विधानसभा तक हंगामा देखने को मिला। पहले यह चुनाव गुरुवार को तय था लेकिन दिन भर हुए हंगामे के चलते इसे शुक्रवार को स्थगित करना पड़ा।
दरअसल, एमसीडी के स्थायी समिति के एक सदस्य का पद रिक्त है। इसी खाली पद के लिए शुक्रवार को उपचुनाव हुआ। इस चुनाव से दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति में बहुमत पर फैसला हो जाएगा। हालांकि, मतदान से पहले आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच एमसीडी सदन से लेकर विधानसभा तक हंगामा देखने को मिला। पहले यह चुनाव गुरुवार को तय था लेकिन दिन भर हुए हंगामे के चलते इसे शुक्रवार को स्थगित करना पड़ा।
चुनाव को क्यों अगले दिन के लिए क्यों स्थगित करना पड़ा?
गुरुवार को दिनभर नाटकीय उठापटक के बाद भी एमसीडी के स्थायी समिति के एक सदस्य का चुनाव नहीं हो सका। देर रात तक चले सियासी ड्रॉमा के बीच चुनाव की प्रक्रिया शुरू तक नहीं हो पाई। इससे पहले चुनाव के दौरान सदन में मोबाइल ले जाने की पाबंदी पर उठे हंगामे के बीच मेयर शैली ओबराय ने करीब 3:50 बजे बैठक 5 अक्तूबर के लिए स्थगित कर दी थी। हालांकि, उपराज्यपाल ने मेयर के फैसले को पलटते हुए आदेश दिया कि रात 10 बजे तक चुनाव प्रक्रिया शुरू करने की उन्हें रिपोर्ट सौंपी जाए।
गुरुवार को दिनभर नाटकीय उठापटक के बाद भी एमसीडी के स्थायी समिति के एक सदस्य का चुनाव नहीं हो सका। देर रात तक चले सियासी ड्रॉमा के बीच चुनाव की प्रक्रिया शुरू तक नहीं हो पाई। इससे पहले चुनाव के दौरान सदन में मोबाइल ले जाने की पाबंदी पर उठे हंगामे के बीच मेयर शैली ओबराय ने करीब 3:50 बजे बैठक 5 अक्तूबर के लिए स्थगित कर दी थी। हालांकि, उपराज्यपाल ने मेयर के फैसले को पलटते हुए आदेश दिया कि रात 10 बजे तक चुनाव प्रक्रिया शुरू करने की उन्हें रिपोर्ट सौंपी जाए।
इसके बाद निगम ने फिर से तैयारी शुरू की। पार्षदों को बुलावा भेजा गया। भाजपा के पार्षद निगम मुख्यालय पहुंच भी गए, लेकिन आप पार्षद सदन में उपस्थित नहीं हुए। इस पर निगम आयुक्त ने कानूनी सलाह ली और चुनाव स्थगित करने का फैसला लिया।
विवाद की असली वजह क्या है?
स्थायी समिति के एक सदस्य के चुनाव को लेकर सदन में मेयर और एमसीडी आयुक्त भी आमने-सामने दिखे। आयुक्त की तरफ से पार्षदों पर मोबाइल साथ लाने पर लगाई गई रोक को लेकर दोनों में टकराव हुआ। आलम यह रहा कि मेयर डॉ. शैली ओबरॉय और आयुक्त अश्वनी कुमार ने एक-दूसरे का ही आदेश नहीं माना। मेयर ने पार्षदों की गरिमा का हवाला देते हुए उनकी जांच न करने और मोबाइल लाने के निर्देश दिए, जबकि आयुक्त ने चुनाव निष्पक्ष कराने व गोपनीयता बनाए रखने का हवाला देते हुए फोन लाने पर लगाई गई रोक को जायज ठहराया। इस मामले में आदेश न मानने पर मेयर ने चुनाव कराए बिना 5 अक्तूबर तक के लिए सदन की बैठक स्थगित कर दी।
स्थायी समिति के एक सदस्य के चुनाव को लेकर सदन में मेयर और एमसीडी आयुक्त भी आमने-सामने दिखे। आयुक्त की तरफ से पार्षदों पर मोबाइल साथ लाने पर लगाई गई रोक को लेकर दोनों में टकराव हुआ। आलम यह रहा कि मेयर डॉ. शैली ओबरॉय और आयुक्त अश्वनी कुमार ने एक-दूसरे का ही आदेश नहीं माना। मेयर ने पार्षदों की गरिमा का हवाला देते हुए उनकी जांच न करने और मोबाइल लाने के निर्देश दिए, जबकि आयुक्त ने चुनाव निष्पक्ष कराने व गोपनीयता बनाए रखने का हवाला देते हुए फोन लाने पर लगाई गई रोक को जायज ठहराया। इस मामले में आदेश न मानने पर मेयर ने चुनाव कराए बिना 5 अक्तूबर तक के लिए सदन की बैठक स्थगित कर दी।