सार
Electoral College In US Election: अमेरिकी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव नहीं करते हैं। इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिकी चुनावों में एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अमेरिकी अपने राज्य के निर्वाचकों (इलेक्टर्स) के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से अपने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। आइए जानते हैं इलेक्टोरल कॉलेज के बारे में...
विस्तार
अमेरिका में मंगलवार को आम चुनाव है। अमेरिकी नागरिक राष्ट्रपति और संसद सदस्यों (कांग्रेस) को अप्रत्यक्ष रूप से चुनने के लिए मतदान में हिस्सा लेंगे। वास्तव में अमेरिकी लोग सीधे तौर पर वोट नहीं देते कि वे किसे राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बनाना चाहते हैं। इसके बजाय वे एक समूह के सदस्य यानी इलेक्टोरल कॉलेज के लिए वोट करते हैं। बाद में इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्य 'इलेक्टर' राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। इलेक्टोरल कॉलेज एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कम वोट पाने वाला उम्मीदवार भी चुनाव जीत सकता है। अमेरिकी इतिहास में पांच राष्ट्रपति हुए हैं जिन्होंने जनता द्वारा दिए गए 'पापुलर वोट' जीते बिना राष्ट्रपति का चुनाव जीता है। ऐसा करने वाले सबसे हाल के राष्ट्रपति 2016 में डोनाल्ड ट्रंप थे।
अपनी स्थापना के बाद से ही अमेरिका राष्ट्रपति के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज का इस्तेमाल करता रहा है। यह कैसे काम करता है, इसका इतिहास क्या है और राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में मतदाता क्या भूमिका निभाते हैं, इसके बारे में जानते हैं...
अपनी स्थापना के बाद से ही अमेरिका राष्ट्रपति के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज का इस्तेमाल करता रहा है। यह कैसे काम करता है, इसका इतिहास क्या है और राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में मतदाता क्या भूमिका निभाते हैं, इसके बारे में जानते हैं...
इलेक्टोरल कॉलेज क्या है और यह कैसे काम करता है?
इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिकी चुनावों में एक अहम प्रक्रिया है। इलेक्टोरल कॉलेज के द्वारा अमेरिकी नागरिक अपने-अपने राज्य के निर्वाचकों (इलेक्टर्स) के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से अपने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। इसे हम भारत के रूप में ऐसे समझें कि लोगों ने अपनी विधानसभा या लोकसभा सीट पर विधायक या सांसद का चुनाव किया और बाद में यही विधायक या सांसद मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुन लें। हालांकि, अमेरिकी परिप्रेक्ष्य में चुनावी प्रक्रिया काफी जटिल है।
इस तरह से अमेरिकी लोग राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनने के लिए इलेक्टोरल कॉलेज के लिए वोट करते हैं। बाद में यही इलेक्टर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के लिए उनके द्वारा चुने गए उम्मीदवार का समर्थन करते हैं। पूरे अमेरिका में कुल 538 इलेक्टर हैं। इनमें से अमेरिका के सभी 50 राज्यों से आबादी के आधार पर 535 इलेक्टर और अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन, डीसी (डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया) से तीन अतिरिक्त निर्वाचक होते हैं।
डीसी से अलग इन 535 इलेक्टोरल वोट को समझें तो अमेरिकी संसद की कुल सीटों संख्या 535 है जिनमें से 435 हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (एचओआर) और 100 सीनेट के सदस्य हैं। भारत के उदाहरण से समझें तो हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सदस्य निचले सदन लोकसभा के सांसद जबकि उच्च सदन सीनेट के सदस्य या सीनेटर राज्यसभा सांसद हुए। नियमों के मुताबिक, हर राज्य में कम से कम एक या अधिक से अधिक आबादी के अनुसार एचओआर होंगे, जबकि सीनेटर हर राज्य से दो ही होंगे। यानी चुनाव में हर राज्य से कम से कम तीन इलेक्टोरल वोट तो होंगे ही।
राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवारों को कुल 538 में से 270 इलेक्टोरल वोट का बहुमत हासिल करना होता है।
अमेरिका के संस्थापकों ने 1787 में संविधान में निर्वाचक मंडल की स्थापना की थी। राष्ट्रीय अभिलेखागार ने उल्लेख किया कि 'निर्वाचक मंडल' शब्द देश के ऐतिहासिक दस्तावेज में नहीं है बल्कि 'निर्वाचक' शब्द का जिक्र है। 1804 में 12वें अमेरिकी संशोधन के जरिए इलेक्टोरल कॉलेज के कुछ नियमों को बदल दिया गया। इसके तहत महत्वपूर्ण रूप से राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए अलग-अलग इलेक्टोरल वोट डाले जाने की आवश्यकता खत्म कर दी गई।
इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिकी चुनावों में एक अहम प्रक्रिया है। इलेक्टोरल कॉलेज के द्वारा अमेरिकी नागरिक अपने-अपने राज्य के निर्वाचकों (इलेक्टर्स) के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से अपने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। इसे हम भारत के रूप में ऐसे समझें कि लोगों ने अपनी विधानसभा या लोकसभा सीट पर विधायक या सांसद का चुनाव किया और बाद में यही विधायक या सांसद मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुन लें। हालांकि, अमेरिकी परिप्रेक्ष्य में चुनावी प्रक्रिया काफी जटिल है।
इस तरह से अमेरिकी लोग राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनने के लिए इलेक्टोरल कॉलेज के लिए वोट करते हैं। बाद में यही इलेक्टर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के लिए उनके द्वारा चुने गए उम्मीदवार का समर्थन करते हैं। पूरे अमेरिका में कुल 538 इलेक्टर हैं। इनमें से अमेरिका के सभी 50 राज्यों से आबादी के आधार पर 535 इलेक्टर और अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन, डीसी (डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया) से तीन अतिरिक्त निर्वाचक होते हैं।
डीसी से अलग इन 535 इलेक्टोरल वोट को समझें तो अमेरिकी संसद की कुल सीटों संख्या 535 है जिनमें से 435 हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (एचओआर) और 100 सीनेट के सदस्य हैं। भारत के उदाहरण से समझें तो हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सदस्य निचले सदन लोकसभा के सांसद जबकि उच्च सदन सीनेट के सदस्य या सीनेटर राज्यसभा सांसद हुए। नियमों के मुताबिक, हर राज्य में कम से कम एक या अधिक से अधिक आबादी के अनुसार एचओआर होंगे, जबकि सीनेटर हर राज्य से दो ही होंगे। यानी चुनाव में हर राज्य से कम से कम तीन इलेक्टोरल वोट तो होंगे ही।
राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवारों को कुल 538 में से 270 इलेक्टोरल वोट का बहुमत हासिल करना होता है।
अमेरिका के संस्थापकों ने 1787 में संविधान में निर्वाचक मंडल की स्थापना की थी। राष्ट्रीय अभिलेखागार ने उल्लेख किया कि 'निर्वाचक मंडल' शब्द देश के ऐतिहासिक दस्तावेज में नहीं है बल्कि 'निर्वाचक' शब्द का जिक्र है। 1804 में 12वें अमेरिकी संशोधन के जरिए इलेक्टोरल कॉलेज के कुछ नियमों को बदल दिया गया। इसके तहत महत्वपूर्ण रूप से राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए अलग-अलग इलेक्टोरल वोट डाले जाने की आवश्यकता खत्म कर दी गई।
चुनाव में वोटर्स से अलग इलेक्टर्स की भूमिका क्या होती है?
आम चुनाव से पहले अमेरिका के सभी राज्य इलेक्टर्स की सूची चुनते हैं। आम तौर पर नवंबर के पहले हफ्ते में मतदाता मतपत्र या अन्य माध्यमों से मतदान करते हैं। ये 'लोकप्रिय वोट' जीतने वाला उम्मीदवार यह तय करता है कि इलेक्टोरल कॉलेज में राष्ट्रपति के लिए कौन से इलेक्टर्स रिपब्लिकन, डेमोक्रेट या कोई तीसरी पार्टी के लिए वोट डालेंगे।
अधिकांश राज्यों में विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम लागू होता है। इसका मतलब है कि जो भी प्रत्याशी राज्य में सबसे अधिक वोट हासिल करता है, वह राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट जीत लेता है। इसे उदाहरण से ऐसे समझें कि 2020 में करीब चार करोड़ की आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया में कुल 55 इलेक्टोरल वोट थे वहां कुल 1.71 करोड़ लोगों ने वोटिंग की थी। इनमें से 1.11 करोड़ वोट बाइडन के खाते में चले गए और 60 लाख वोट ट्रंप को मिले। अब जब कैलिफोर्निया जैसे अधिकतर राज्यों में विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम लागू है तो अधिकतर वोट पाने वाले जो बाइडन कैलिफोर्निया के सभी 55 इलेक्टोरल वोट ले गए।
हालांकि, चार इलेक्टर वाले मायने और पांच इलेक्टर वाले नेब्रास्का दो ऐसे राज्य हैं जो अपने इलेक्टोरल वोटों को इस आधार पर बांटते हैं कि हर उम्मीदवार को कितने लोकप्रिय वोट या जनता के वोट मिलते हैं।
राष्ट्रपति के लिए वोट डालने के लिए इलेक्टर्स दिसंबर के मध्य में अपने-अपने राज्यों में बैठक करते हैं। यह बैठक दिसंबर के दूसरे बुधवार के बाद पहले मंगलवार को होती है, जो इस साल 17 दिसंबर को पड़ रही है। यह भी दिलचस्प है कि अमेरिका में ऐसा कोई कानून नहीं है जो निर्वाचकों को उसी उम्मीदवार को वोट देने के लिए बाध्य करे जिसके प्रति वो वचनबद्ध हैं। इन्हें फेथफुल इलेक्टर कहा जाता है और माना जाता है ये उसी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन करेंगे जिसके लिए उन्होंने शपथ ली है। इन निर्वाचकों का चयन पार्टियां ही करती हैं।
आम चुनाव से पहले अमेरिका के सभी राज्य इलेक्टर्स की सूची चुनते हैं। आम तौर पर नवंबर के पहले हफ्ते में मतदाता मतपत्र या अन्य माध्यमों से मतदान करते हैं। ये 'लोकप्रिय वोट' जीतने वाला उम्मीदवार यह तय करता है कि इलेक्टोरल कॉलेज में राष्ट्रपति के लिए कौन से इलेक्टर्स रिपब्लिकन, डेमोक्रेट या कोई तीसरी पार्टी के लिए वोट डालेंगे।
अधिकांश राज्यों में विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम लागू होता है। इसका मतलब है कि जो भी प्रत्याशी राज्य में सबसे अधिक वोट हासिल करता है, वह राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट जीत लेता है। इसे उदाहरण से ऐसे समझें कि 2020 में करीब चार करोड़ की आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया में कुल 55 इलेक्टोरल वोट थे वहां कुल 1.71 करोड़ लोगों ने वोटिंग की थी। इनमें से 1.11 करोड़ वोट बाइडन के खाते में चले गए और 60 लाख वोट ट्रंप को मिले। अब जब कैलिफोर्निया जैसे अधिकतर राज्यों में विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम लागू है तो अधिकतर वोट पाने वाले जो बाइडन कैलिफोर्निया के सभी 55 इलेक्टोरल वोट ले गए।
हालांकि, चार इलेक्टर वाले मायने और पांच इलेक्टर वाले नेब्रास्का दो ऐसे राज्य हैं जो अपने इलेक्टोरल वोटों को इस आधार पर बांटते हैं कि हर उम्मीदवार को कितने लोकप्रिय वोट या जनता के वोट मिलते हैं।
राष्ट्रपति के लिए वोट डालने के लिए इलेक्टर्स दिसंबर के मध्य में अपने-अपने राज्यों में बैठक करते हैं। यह बैठक दिसंबर के दूसरे बुधवार के बाद पहले मंगलवार को होती है, जो इस साल 17 दिसंबर को पड़ रही है। यह भी दिलचस्प है कि अमेरिका में ऐसा कोई कानून नहीं है जो निर्वाचकों को उसी उम्मीदवार को वोट देने के लिए बाध्य करे जिसके प्रति वो वचनबद्ध हैं। इन्हें फेथफुल इलेक्टर कहा जाता है और माना जाता है ये उसी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन करेंगे जिसके लिए उन्होंने शपथ ली है। इन निर्वाचकों का चयन पार्टियां ही करती हैं।