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Economic Survey: वित्त वर्ष 2025-26 में 6.3-6.8% के बीच रह सकती है वृद्धि दर, आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान

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Economic Survey: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा और राज्यसभा में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, विकास के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए, वित्त वर्ष 2026 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6.3 से 6.8 प्रतिशत के बीच रहने की उम्मीद है।




विस्तार

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा और राज्यसभा में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया। सदन की कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर दी गई। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, विकास के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए, वित्त वर्ष 2026 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6.3 से 6.8 प्रतिशत के बीच रहने की उम्मीद है। 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया। आर्थिक सर्वेक्षण एक वार्षिक दस्तावेज है जिसे सरकार द्वारा केंद्रीय बजट से पहले अर्थव्यवस्था की स्थिति की समीक्षा के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

यह दस्तावेज अर्थव्यवस्था की अल्पावधि से मध्यम अवधि की संभावनाओं को सामने लाता है। आर्थिक सर्वेक्षण मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के आर्थिक प्रभाग की ओर से तैयार किया जाता है। पहला आर्थिक सर्वेक्षण 1950-51 में अस्तित्व में आया था, जब यह बजट दस्तावेजों का हिस्सा हुआ करता था।

1960 के दशक में इसे केन्द्रीय बजट से अलग कर दिया गया और बजट प्रस्तुत होने से एक दिन पहले इसे पेश किया गया। वित्त मंत्री शनिवार को वर्ष 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट पेश करेंगी।

आर्थिक समीक्षा 2024-25 के अहम बिंदु

  • भारतीय अर्थव्यवस्था के 6.3 से 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान
  • मजबूत बाह्य खाता और स्थिर निजी खपत के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत
  • ऊंचे सार्वजनिक व्यय और बेहतर होती कारोबारी उम्मीदों से निवेश गतिविधियों में तेजी आने की उम्मीद
  • वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की आर्थिक संभावनाएं संतुलित हैं। 
  • राजनीतिक और व्यापार अनिश्चितताएं वृद्धि के मार्ग की प्रमुख बाधाएं
  • चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में खाद्य मुद्रास्फीति के नरम पड़ने की संभावना
  • सब्जियों की कीमतों में गिरावट, खरीफ फसलों की आवक से मिलेगी मदद
  • वित्त वर्ष 2025-26 में जिंस की ऊंची कीमतों से मुद्रास्फीति का जोखिम सीमित लगता है, भू-राजनीतिक दबाव अब भी जोखिम उत्पन्न कर रहा है
  • भारत को जमीनी स्तर के संरचनात्मक सुधारों, नियमन को शिथिल करते हुए अपनी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बेहतर करने की जरूरत
  • एआई के लिए उचित शासन ढांचे की कमी से प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग होने की आशंका

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