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Bihar Polls 2025 : क्या अटकेगा बिहार में मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण? तेजस्वी ने उठाए सवाल; आयोग की यह है तैयारी

 सार

Bihar News : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची को लेकर उठा सियासी तूफान अभी शांत नहीं हुआ था कि बिहार में भी ऐसे ही माहौल की तैयारी हो गई है। राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बीते दिन मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया को सरकार की साजिश करार दिया। हालांकि, चुनाव आयोग पहले ही तमाम राजनीतिक दलों की ओर से लगाए गए ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज करता आया है। ऐसे में आइए बिहार के मामले को विस्तार से समझते हैं..




विस्तार

बिहार विधानसभा चुनाव अक्तूबर मध्य से नवंबर के पहले हफ्ते के बीच हो सकते हैं। अब तक की तैयारी इसी ओर इशारा कर रही है। चुनाव के पहले कहीं भी मतदाता सूची का पुनरीक्षण और पुन: प्रकाशन होता है। इसी क्रम में बिहार में भी चुनाव आयोग मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण करा रहा है। शुक्रवार को बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और आगामी चुनाव में महागठबंधन के संभावित सीएम फेस तेजस्वी यादव ने बिहार चुनाव से पहले मतदाताओं के गहन पुनरीक्षण को सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की । तेजस्वी यादव ने कई तरह के आरोप लगाए, कई गंभीर सवाल भी पूछे। इस बीच 'अमर उजाला' ने उपलब्ध दस्तावेजों, कागजातों और जमीन पर काम कर रहे अधिकारियों के बीच पहुंचकर पड़ताल की और जानने की कोशिश की कि पूरी प्रक्रिया को लेकर कैसे-कैसे उठ रहे हैं और चुनाव आयोग ने इस पूरी प्रक्रिया को लेकर कैसी तैयारी की है...

क्या बिहार की सभी पुरानी मतदाता सूचियों को रद्द कर दिया जा रहा है?
विशेष गहन पुनरीक्षण इससे पहले वर्ष 2003 में हुआ था। उस समय जो मतदाता सूची प्रकाशित की गई, उसे पूर्ण मान्यता मिली हुई है। उसके बाद के सभी पुनरीक्षण और पुन: प्रकाशन के जो भी रिकॉर्ड हैं, उन्हें वेरीफाई किया जाना है। यानी, 2003 की उस मतदाता सूची के बाद जो भी नए वोटर जुड़े या हटे हैं, उनका सत्यापन किया जाएगा। बगैर सत्यापन उन्हें वोटर नहीं माना जाएगा।

भले पहले से नाम हो, लेकिन नई सूची के लिए नए सिरे से आवेदन करना होगा?
हां, लेकिन 2003 की गहन पुनरीक्षण वाली मतदाता सूची में नाम होगा तो कोई कागज संलग्न नहीं करना होगा। केवल गणना फॉर्म (Enumeration Form) भरकर उसी से सत्यापन हो जाएगा। उसके बाद जो भी लोग मतदाता सूची में जुड़े हैं, उनसे नागरिकता साबित करने वाला अलग-अलग प्रमाण-पत्र मांगा गया है।  

क्या नया वोटर आईडी कार्ड मिलेगा?
हां। नए प्रारूप में जानकारी ली जा रही है और सारा रिकॉर्ड एक लंबे अरसे के लिए रहेगा, इसलिए नया वोटर आईडी कार्ड भी बाद में जारी किया जाएगा।

चुनाव से दो महीने पहले यह विशेष पुनरीक्षण जैसी बड़ी एक्सरसाइज क्यों?
पश्चिम बंगाल के साथ-साथ बिहार में भी अवैध बांग्लादेशियों के रहने के दावे किए जा रहे हैं। इसके अलावा यह भी सदंह जताया जा रहा है कि कुछ पाकस्तानी मूल के लोग भी अवैध तरीके से बिहार में रह रहे हैं। ऐसे में फर्जी दस्तावेजों के जरिए मतदान प्रक्रिया में अवैध घुसपैठियों के हिस्सा लेने की आशंका बढ़ गई है। इसी दावों को ध्यान में रखते हुए और चुनाव को पारदर्शी व निष्पक्ष आयोजित कराने के उद्देश्य से पुनरीक्षण कराया जा रहा है। हालांकि, यह प्रक्रिया लोकसभा चुनाव के वक्त क्यों नहीं कराई गई, ऐसे लेकर कई तरह के सवाल के रहे हैं।

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गिनती के दिनों में यह करना संभव?
22 साल पहले यानी 2003 में इस प्रक्रिया के दौरान दो साल लगे थे। एक महीने में विशेष गहन पुनरीक्षण का रिकॉर्ड जुटाकर सत्यापन करना और उसके बाद पूरे एक महीने दावा-आपत्तियों को करना है। 22 साल पहले सब कुछ कंप्यूटराइज्ड नहीं था। मोबाइल या टैब जैसे डाटा फीड उपकरण नहीं थे। ऑनलाइन फॉर्म भरने या एक व्यक्ति के डाटा को लेकर फॉर्म प्रिंट करने का विकल्प सुलभ नहीं था। इसके अलावा तकनीक-सक्षम मानव संसाधन भी नहीं थे। इसलिए अब यह सवाल इच्छाशक्ति और समर्पण पर ही निर्भर करता है। 

73 प्रतिशत क्षेत्रफल बाढ़ से प्रभावित, प्रक्रिया में सबसे बड़ी यही चुनौती
बिहार की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से चुनाव भी बाढ़ के दौरान नहीं कराने की परंपरा रही है। नेपाल से सटे जिले- पश्चिम चंपारण, पूर्व चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज तो बाढ़ के प्रभाव में रहते ही हैं। नेपाली बाढ़ का पानी शिवहर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार आदि को भी बुरी तरह प्रभावित करता है। कई बार तो खगड़िया और यदा-कदा बेगूसराय भी इस बाढ़ की जद में आए हैं। इस बार भी बाढ़ की आशंका है। झारखंड की नदियों से गया, नवादा में आश्चर्यजनक तौर पर तेजी से पानी आ रहा है। इस तरह देखें तो लगभग आधा बिहार तो बाढ़ की आशंका या आंशिक प्रभाव में रहेगा ही। इस समय लोग परेशान रहते हैं। शादी-ब्याह तक रुक जाता है। ऐसे में बाढ़ राहत के साथ मतादाताओं के कागजात जुटाना कर्मचारियों के लिए चुनौती का सबब बन सकता है। 

गरीबों-वंचितों का नाम मतदाता सूची से काटे जाने का दावा गलत
2003 के पूर्व के वोटरों से अलग कुछ कागज नहीं मांगे जाएंगे। उसके बाद वालों के पास 11 तरह के कागजों का विकल्प है। अगर यह सब भी नहीं उपलब्ध हुआ तो 1 अगस्त से 1 सितंबर के बीच दावा-आपत्ति दाखिल करने पर अधिकारी भौतिक निरीक्षण कर पुष्टि करेंगे कि फलां व्यक्ति वास्तव में यहीं का नागरिक है। दावा सही होने पर उसे भी बाकी वोटरों की तरह जोड़ लिया जाएगा। 

गरीबों का राशन, पेंशन, अजा-अजजा व पिछड़ों की छात्रवृत्ति बंद करने का दावा भी गलत
निर्वाचन आयोग के वोटर कार्ड की जगह अब ज्यादातर योजनाएं आधार और बैंक खाते से जुड़ी हैं। इसलिए, इस प्रक्रिया के आधार पर यह आरोप निराधार प्रतीत होता है।

आधार कार्ड को मतदाता सूची से लिंक करने की कवायद हो रही तो इसी को मान्यता क्यों नहीं दी गई?
एक पिता की एक संतान का दो आधार कार्ड असंभव माना जाता है। आंखों की पुतलियों और फिंगर प्रिंट रिकॉर्ड के कारण भी डुप्लीकेसी की आशंका नहीं रहती है। इसी आधार को देखते हुए, मतदाता सूची में कोई आदमी दो जगह न जुड़ा रहे- वोटर कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव है। गहन पुनरीक्षण में आधार का डाटा इसलिए अमान्य हो जाता, क्योंकि यह कई बार साबित हो चुका है कि विदेशियों ने भी आधार कार्ड बनवा रखे हैं। 

2024 लोकसभा चुनाव वाली मतदाता सूची पर भी सवाल?
सिर्फ 2024 के लोकसभा चुनाव की ही बात नहीं है, बल्कि 2003 के बाद से हर पुनरीक्षण पर प्रकाशित हुई मतदाता सूची में कभी मृत वोटरों का रिकॉर्ड मिलता था तो कभी मौजूदा वोटरों का नाम गायब। कई जिलों से बांग्लादेशियों के भी वोटर बने होने की सूचना आ चुकी है। इसलिए, पक्का करने के लिए गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया हो रही है। यह प्रक्रिया किसी पुराने चुनाव की मतदाता सूची को गलत नहीं करार देगी।

एक महीने के अंदर लोग नागरिकता कैसे साबित करेंगे, दस्तावेज कहां से लाएंगे?
तेजस्वी यादव की मानें तो नौ करोड़ योग्य मतदाताओं में से 4 प्रतिशत लोग 39-40 आयु के हैं। ऐसे ही 20 से 38 साल के 85 प्रतिशत लोग यानी करीब चार करोड़ से अधिक को अपने पिता या माता की नागरिकता का प्रमाण देना होगा। 18 से 20 वर्ष के 11 प्रतिशत लोग यानी 50 लाख से अधिक को माता और पिता, दोनों की नागरिकता के दस्तावेज देने होंगे। ऐसे मामले में जो लोग सही हैं, उन्हें खुद को सही साबित करने में न पहले परेशानी थी और न आगे होगी। 11 प्रमाणपत्रों में से कोई भी नहीं हो, तो भी दावा-आपत्ति के जरिए नागरिकता सिद्ध करने का विकल्प है।

जिनके पास जन्म प्रमाणपत्र, मैट्रिक प्रमाण-पत्र और जाति प्रमाण-पत्र तीनों में से कुछ नहीं होगा, उनका क्या होगा?
NFHS-3 के अनुसार 2001-2005 में जन्मे बच्चों में केवल 2.8 प्रतिशत के पास जन्म प्रमाण-पत्र है। NFHS-2 के अनुसार आज जो 40 से 60 वर्ष के हैं, उनमें से केवल 10-13 प्रतिशत के पास मैट्रिक प्रमाण-पत्र होगा। इंडिया ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे 2011-12 के अनुसार अनुसूचित जातियों के लगभग 20 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग के लगभग 25 प्रतिश लोगों के पास ही जाति प्रमाण-पत्र था। औसतन 20 प्रतिशत परिवारों के पास ही यह प्रमाण-पत्र होगा। ऐसे में जिनके पास जन्म प्रमाणपत्र भी नहीं, मैट्रिक भी नहीं है और जाति प्रमाणपत्र भी नहीं होगा, वह बाकी कोई भी कागज नहीं दे सके तो नागरिकता का दावा करेंगे। उन दावों का भौतिक सत्यापन किया जाएगा। 

जातीय सर्वेक्षण में 9-10 महीने लगे थे, तब कोई दस्तावेज नहीं मांगा गया था। यह इतनी जल्दी कैसे होगा?
निर्वाचन आयोग ने बाकी राज्यों में जो भी तय किया था, वह समय पर हुआ है। बिहार की भौतिक परिस्थतियों के कारण विशेष गहन पुनरीक्षण का काम पूरा करने में चुनौतियां आ सकती हैं। दावा-आपत्ति लेकर भी इस काम को चुनाव बाद के लिए टाला जा सकता है।

भारत सरकार के अनुसार बिहार के 2 करोड़ 90 लाख पंजीकृत मजदूर बिहार से बाहर कार्य करते हैं। इनका क्या होगा?
वोटरों का पुराना रिकॉर्ड ऑनलाइन है। फॉर्म के प्रिंट का भौतिक सत्यापन करते समय बीएलओ इस पर अपनी टिप्पणी लिखेंगे और ऊपर के अधिकारी दावा-आपत्ति की प्रक्रिया तक इसका भी समाधान कर लेंगे।

(विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए निर्वाचन आयोग की ओर से जारी दस्तावेजों एवं इस कार्य के लिए ट्रेनिंग ले चुके अधिकारियों से मिली जानकारी और जमीनी राजनीतिक कार्यकर्ताओं से बातचीत पर आधारित)


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