सार
जनगणना की अधिसूचना जारी होने के बाद आगे क्या-क्या होगा? इस बार आबादी की गिनती की प्रक्रिया कितनी अलग होगी? आम जनगणना से जातीय जनगणना कितनी अलग होती है? भारत में इस तरह की जनगणना का क्या इतिहास रहा है? इसके अलावा देश में कब-कब जातिगत जनगणना की मांग हुई है? आइये जानते हैं...
विस्तार
केंद्र सरकार ने जनगणना के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। इसी के साथ आजादी के बाद पहली बार जातीय जनगणना का रास्ता साफ हो गया है। अब पूरे देश में मार्च 2027 की रेफरेंस डेट से जातीय जनगणना कराई जाएगी। हालांकि, इससे पांच महीने पहले अक्तूबर 2026 में पहाड़ी राज्यों में जातीय जनगणना का कार्यक्रम पूरा कर लिया जाएगा। यानी इन राज्यों में अक्तूबर 2026 में आबादी से जुड़े जो भी आंकड़े होंगे, वही रिकॉर्ड में दर्ज किए जाएंगे।
जनगणना की अधिसूचना जारी होने के बाद आगे क्या-क्या होगा? इस बार आबादी की गिनती की प्रक्रिया कितनी अलग होगी? आम जनगणना से जातीय जनगणना कितनी अलग होती है? भारत में इस तरह की जनगणना का क्या इतिहास रहा है? इसके अलावा देश में कब-कब जातिगत जनगणना की मांग हुई है? आइये जानते हैं...
अब जानें- अधिसूचना जारी होने के बाद क्या होगी प्रक्रिया?
जनगणना का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद केंद्र सरकार को 1948 के जनगणना कानून के तहत इसकी प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होता है। यह तीन चरणों में आगे बढ़ता है.
जनगणना का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद केंद्र सरकार को 1948 के जनगणना कानून के तहत इसकी प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होता है। यह तीन चरणों में आगे बढ़ता है.
जनगणना करने वाले अधिकारी किस तरह के सवाल पूछेंगे?
जनगणना का कार्यक्रम जितना दिखता है, उतना आसान नहीं है, क्योंकि यह सिर्फ भारत में रहने वाले लोगों की गिनती नहीं है। वृहद तौर पर देखा जाए तो यह भारत में कई पहलुओं को जानने का भी अवसर बनता है। मसलन देश में कितनी आबादी है, इसमें पुरुषों-महिलाओं की जनसंख्या कितनी है? साक्षरता दर कितनी है? किस धर्म के कितने लोग भारत में बसते हैं? भारत में प्रजनन दर कितनी है? अलग-अलग वर्गों की आर्थिक स्थिति कैसी है, आदि। यानी जनगणना लोगों की गिनती ही नहीं, बल्कि समाज के मूलभूत ढांचे को समझने का भी जरिया है।
जनगणना का कार्यक्रम जितना दिखता है, उतना आसान नहीं है, क्योंकि यह सिर्फ भारत में रहने वाले लोगों की गिनती नहीं है। वृहद तौर पर देखा जाए तो यह भारत में कई पहलुओं को जानने का भी अवसर बनता है। मसलन देश में कितनी आबादी है, इसमें पुरुषों-महिलाओं की जनसंख्या कितनी है? साक्षरता दर कितनी है? किस धर्म के कितने लोग भारत में बसते हैं? भारत में प्रजनन दर कितनी है? अलग-अलग वर्गों की आर्थिक स्थिति कैसी है, आदि। यानी जनगणना लोगों की गिनती ही नहीं, बल्कि समाज के मूलभूत ढांचे को समझने का भी जरिया है।
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