कोई 22 साल पहले रिलीज हुई फिल्म ‘लगान’ अगर याद हो तो उसकी कहानी का मूल तत्व यही रहा कि एक विकट परिस्थिति के सामने कैसे अलग अलग सोच वाले लोग एक विपदा को टालने एकजुट होते हैं और तयशुदा हार को जीत में बदल देते हैं। जीवन के संघर्ष की ऐसी ही कुछ कहानी है फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ की। फिल्म का निर्देशन, संगीत और अभिनय भले उस स्तर का न हो लेकिन ये फिल्म भी जीने का हौसला रखने और सामने खड़ी हार को अपनी जिजीविषा से विजय में बदल देने के संघर्ष में दर्शकों को अपने साथ जोड़ लेने का अच्छा प्रयास है। फिल्म की शूटिंग चूंकि ब्रिटेन में बने सेट पर हुई है लिहाजा इसमें वातावरण अपना उतना असर नहीं छोड़ पाता है जितनी कि ऐसी कहानियों में जरूरत होता है लेकिन फिल्म ‘रुस्तम’ के सात साल बाद निर्देशन में लौटे निर्देशक टीनू देसाई दो घंटे 14 मिनट की इस फिल्म में फर्स्ट डिवीजन पास होने में सफल रहे हैं।



