सार
Rae Bareli seat: कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने रायबरेली को लेकर प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं लेकिन दोनों ही दलों ने अंदर-अंदर चक्रव्यूह बना रखा है।
विस्तार
पूरे देश में बढ़ी चुनावी तपिश के बाद भी गांधी परिवार के गढ़ में सियासी पारा ठंडा पड़ा है। यह पहला मौका है, जब नामांकन प्रक्रिया शुरू होने में चंद दिन शेष हैं और राजनीति की रंगत फीकी है। प्रत्याशी तक तय नहीं हैं। इसके लिए न भाजपा आगे आ रही है और न ही कांग्रेस। राजनीतिक पहलू यह है कि दोनों दल हर हाल में यहां चुनाव जीतना चाहते हैं। भाजपा जीती तो पूरे देश में संदेश जाएगा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने दूसरे मजबूत गढ़ को भी नहीं बचा पाई। वहीं, भाजपा के लिए भी विडंबना है। हारने पर दो कार्यकाल के रिपोर्ट कार्ड पर सवाल उठेगा। राजनीतिक मंचों से ताना भी दिया जाएगा कि सोनिया के मैदान से हटने के बाद भी पार्टी रणनीतिक रूप से विफल रही
सियासी दांवपेच से दोनों दलों के पदाधिकारी व कार्यकर्ता ही नहीं, वोटर भी असमंजस में हैं। सवाल साफ है...आखिर रायबरेली से चुनाव लड़ेगा कौन? सत्ता के रण में एक तरफ पंजे की चाल है दो दूसरी तरफ कमल का चक्रव्यूह। इसमें कौन किसे मात देगा...यह कहना मुनासिब नहीं है, लेकिन मौजूं जरूर है।
भाजपा : सता रहा खींचतान का डर
रायबरेली संसदीय सीट से प्रदेश के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिनेश प्रताप सिंह, पूर्व मंत्री एवं ऊंचाहार विधायक डॉ. मनोज कुमार पांडेय समेत कई ऐसे दावेदार हैं, जिनके चुनाव लड़ने की चर्चाएं तेज हैं। इन सबके बीच भाजपा हाईकमान को इस बात की भी चिंता है कि कहीं स्थानीय प्रत्याशी के चुनाव मैदान में उतारने से पार्टी के अंदर खींचतान न मच जाए। भाजपा ऐसे उम्मीदवार की तलाश कर रही है, जो चुनाव भी जीत सके और उसके मैदान में उतरने के बाद पार्टी में किसी तरह की खींचतान भी न हो। वर्ष 2023 में हुए निकाय चुनाव में आपसी खींचतान की वजह से ही नगर पालिका परिषद रायबरेली की सीट हाथ से निकल गई थी। कमजोर समझी जाने वाली कांग्रेस उम्मीदवार ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल कर ली। आपसी खींचतान की काट के लिए ही भाजपा बाहरी पर दांव लगा सकती है
भाजपा : सता रहा खींचतान का डर
रायबरेली संसदीय सीट से प्रदेश के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिनेश प्रताप सिंह, पूर्व मंत्री एवं ऊंचाहार विधायक डॉ. मनोज कुमार पांडेय समेत कई ऐसे दावेदार हैं, जिनके चुनाव लड़ने की चर्चाएं तेज हैं। इन सबके बीच भाजपा हाईकमान को इस बात की भी चिंता है कि कहीं स्थानीय प्रत्याशी के चुनाव मैदान में उतारने से पार्टी के अंदर खींचतान न मच जाए। भाजपा ऐसे उम्मीदवार की तलाश कर रही है, जो चुनाव भी जीत सके और उसके मैदान में उतरने के बाद पार्टी में किसी तरह की खींचतान भी न हो। वर्ष 2023 में हुए निकाय चुनाव में आपसी खींचतान की वजह से ही नगर पालिका परिषद रायबरेली की सीट हाथ से निकल गई थी। कमजोर समझी जाने वाली कांग्रेस उम्मीदवार ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल कर ली। आपसी खींचतान की काट के लिए ही भाजपा बाहरी पर दांव लगा सकती है
कांग्रेस : प्रियंका से देंगे संदेश
मां की विरासत कौन संभालेगा, यह अभी तय तो नहीं हो पाया है। लेकिन यहां से प्रियंका गांधी के ही चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है। कांग्रेस हाईकमान चाहता है कि प्रियंका को रायबरेली से चुनाव लड़ाया जाए, ताकि देश और प्रदेश में इस बात का संदेश जाए कि गांधी परिवार अपने गढ़ को अपना परिवार समझता है। दरअसल, विपक्षी दल भाजपा इस मुद्दे को अक्सर उठाती रही है कि गांधी परिवार रायबरेली का इस्तेमाल सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए करता है। उसे यहां की जनता की कोई फिक्र नहीं है। रायबरेली में जितना विकास होना चाहिए था, गांधी परिवार उतना विकास नहीं करा पाया। पार्टी सूत्र बताते हैं कि प्रियंका ही रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी। बस एलान किया जाना शेष है। अंदर ही अंदर नामांकन की तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं।
मां की विरासत कौन संभालेगा, यह अभी तय तो नहीं हो पाया है। लेकिन यहां से प्रियंका गांधी के ही चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है। कांग्रेस हाईकमान चाहता है कि प्रियंका को रायबरेली से चुनाव लड़ाया जाए, ताकि देश और प्रदेश में इस बात का संदेश जाए कि गांधी परिवार अपने गढ़ को अपना परिवार समझता है। दरअसल, विपक्षी दल भाजपा इस मुद्दे को अक्सर उठाती रही है कि गांधी परिवार रायबरेली का इस्तेमाल सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए करता है। उसे यहां की जनता की कोई फिक्र नहीं है। रायबरेली में जितना विकास होना चाहिए था, गांधी परिवार उतना विकास नहीं करा पाया। पार्टी सूत्र बताते हैं कि प्रियंका ही रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी। बस एलान किया जाना शेष है। अंदर ही अंदर नामांकन की तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं।